बुधवार, 1 मार्च 2017

भोजपुरी भारत के इतिहास का पसीना है : रवीश कुमार

इ के ह जे डिसिजन ले ले बा कि भोजपुरी के कोर्स न चली। पढ़ाई न होई। भाई जी अइसन मत करी। भीसी बनल बानी त राउर एक काम भाषा के विकास और समर्थनों करेके बा। दुकान समझ के विश्विद्यालय मत चलाईं। ढेबुआ कमाए के ई अड्डा न ह। कौनो चूक भइल बा त ठीक कराईं।
सुननी ह कि पचीस साल से भोजपुरी के पढ़ाई चलत रहल। वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय में। कुँवर सिंह ज़िंदाबाद। बताईं उनकर नाम पर बनल विश्वविद्यालय में भोजपुरी न पढ़ावल जाईं त कैंपसवे बंद कर दीं। जे भी दोषी बा ओकरा के खोजीं। लोग भोजपुरी नइखे पढ़त त रउआ प्रोत्साहित करीं। रिसर्च करवाएँगे। जे छात्र जीवन में नइखे ओकरा के भोजपुरी पढ़ाईँ। गृहस्थों त पढ़ सकेला। ई इंटरनेशनल भाषा ह।भोजपुरी बोले वाला लोग मजूरी करत रह गईल। ऐसे हमनी के कापी किताब कम छपनी सन लेकिन इ भाषा के मज़ा कहीं न मिली दुनिया में। विश्वविद्यालय में नौजवाने पढ़िहें सन, इ कौनो बात न भइल। केहू पढ़ सकेला।
ऐसे खिसियाईं जन। गभर्नर साहब से कहीं कि कोर्स के मान्यता देस। मान जाईं। गभर्नर साहब कहले भी बाड़न कि विचार होता। हमार मातृ भाषा ह भोजपुरी। ऐसे रउआ कोर्स चलाईं। लोग नइखे आवत त कोर्स के दर दर ले जाईं। बाकी हमरा डिटेल नइखे मालूम, ऐसे कौनों बात बेजाएं लिख देनी त माफ कर दीं लेकिन बात सही बा कि भोजपुरी के राज्य के समर्थन चाहीं। हम इ मांग के व्यक्तिगत समर्थन दे तानी। हम त चैनल के एंकर बानी लेकिन भोजपुरी हमार निज भाषा ह। स्व ह। ऐसे भोजपुरी के साथ अन्याय मत करीं। हमनी के अकेले नइखीं। ढेर लोग बा। कशिश चैनल पर भोजपुरी पर बहस देख के आँख से लोर गिरे लागल। मातृ भाषा नू है जी मेरी। एतना निर्मोही कैसे हो गइनी रउआ जी। बंद करे ला भोजपुरी मिलल ह।
आ हो लइकन लोग, आंदेलन कर सन लेकिन सरकारी संपत्ति के नुक़सान जन पहुँचावअ। जे लोग नवजुवक बा उनकरो से व्यक्तिगत अनुरोध करतआनी। आंदोलन में भोजपुरी के नीमन गीत बजालव जाव। भोजपुरी गीत बहुत बेकार होत जाता। अश्लील भी। लुहेंड़ा खानी गावता लोग। इहो बात के आंदोलन चलो कि भोजपुरी में निमन लिखल जाओ। गवर्नर साहब के शारदा सिन्हा के गीत सुना द लोग, उ मान जइहें। केहू के बेजाएं कहला के ज़रूरत नइखे। राज्य सरकार के चाहीं कि बिहार के बोली पर शोध ला एक ठो सेंटर खोल दे। बीस एकड़ ज़मीन में हर बोली के सेंटर एक्केगो कैंपस में। कइसन रहीं इ बिचार।
भोजपुरी का सम्मान, इतिहास का सम्मान है ।भोजपुरी भारत के इतिहास का पसीना है। ऐसी भाषा है जो मज़दूरी करती है। इस पसीने को सूखने मत दीजिये। यह भाषा बिहारीपन की आत्मा है। कृपया ध्यान दें।
रवीश कुमार

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