बुधवार, 1 मार्च 2017

भ्रष्ट तंत्र

भारत में सरकारी संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों की वाणी, व्यवहार और काम में भ्रष्टाचार से सब वाकिफ हैं। जनता को तो रोजाना उनके सामने अपनी नाक रगड़नी पड़ती है। गिड़गिड़ाना पड़ता है। जनता पीड़ित होती है। और वे अपना अधिकार समझते हैं यह सब करना।
उनके मन में कोई दया नहीं। कोई डर नहीं। क्योंकि वो जानते हैं कि उनके इस चक्रव्यूह रूपी तंत्र को भेदने की शक्ति और हिम्मत भला किसमें है।
कोई इनकी शिकायत नहीं कर सकता। कैसे करे? क्या करे? कहाँ करे? कर भी दे तो क्या? इसलिए जनता झेलती रहती है। सहती रहती है।
ऐसे कर्मचारियों का यह भ्रष्ट तंत्र ही वजह बनता है आमजन को सरकार के खिलाफ करने को। देश की प्रगति रोकने को। और कुछ लोग तो विद्रोह (सशस्त्र/हिंसक भी) भी कर रहे हैं। जान ले रहे है। जान दे रहे हैं। इससे कौन छलनी हो रहा है? कौन/क्या मर रहा है?
क्या कोई है जो इस अमरबेल को प्रगति की सीढ़ी में बदल सके?
2014 में चुनावों के दौरान हमने मोदी को वोट देने वालों का मन पढ़ा। वो मोदी की जीत में अपने सपनों का सच होना देख रहे थे। आमजन सूखे में बारिश होने की प्रार्थना जैसी मोदी की जीत की कामना कर रहा था।
मोदी जीते। पर अब वो हार रहे हैं। जनता के मन से उतार रहे हैं। इन्हीं की वजह से। इसलिए मोदी शक्ति का केन्द्रीयकरण करते हैं। ताकि शक्ति उनके और कुछ अच्छे – सही चुने हुए लोगों के पास ही रहे। जिससे वे राष्ट्र की प्रगति के बारे में मोदी की सोच व योजना के साथ कदम मिला सके। (मगर आप ‘बुरों’ को खत्म नहीं कर सकते। आपको ‘बुराई’ को खत्म करना चाहिए। फिर आपको डर नहीं लगेगा। आप शक्ति का केन्द्रीकरण नहीं करेंगे।) तब सब अपना – अपना काम करेंगे। ज़िम्मेदारी से करेंगे। तब हम साथ - साथ काम करेंगे। आगे बढ़ेंगे।

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