बुधवार, 1 मार्च 2017

भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का विरोध

हिंदी के चुनिंदा 110 विद्वानों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का विरोध किया है। इस संबंध में 14 जनवरी को जंतर-मंतर पर धरने की तैयारी भी है।
कोलकाता विश्र्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफेसर और हिंदी बचाओ मंच के संयोजक डॉ अमरनाथ का कहना है कि भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करने वालों ने अपनी मांग के पक्ष में जिन नौ आधारों का उल्लेख किया है, वे सभी तथ्यात्मक दृष्टि से अपुष्ट, अतार्किक और भ्रामक हैं।
दावा है कि भोजपुरी भाषियों की संख्या 20 करोड़ है, जबकि यह गलत तथ्य है। 2001 की जनगणना के अनुसार भोजपुरी बोलने वालों की संख्या तीन करोड़ 30 लाख 99 हजार 797 है। उन्होंने कहा, हिंदीभाषी समाज की प्रकृति द्विभाषिकता की है।
हम घरों में अपनी जनपदीय भाषा अवधी, भोजपुरी, ब्रजी भी बोलते हैं और लिखने-पढ़ने के लिए हिंदी का भी प्रयोग करते हैं। इसलिए राजभाषा अधिनियम के अनुसार हमें 'क' श्रेणी में रखा गया है और दस राज्यों में बंटने के बावजूद हमें हिंदीभाषी कहा गया है।
हिंदी बचाओ मंच का मानना है कि भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल होने से हिंदीभाषी आबादी में से भोजपुरी भाषियों की जनसंख्या घट जाएगी। साथ ही ब्रज, अवधी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, बुंदेली, मगही, अंगिका आदि भाषाएं भी अपने लिए आठवीं अनुसूची में स्थान की मांग करेंगी और इनमें से किसी का दावा भोजपुरी से कमजोर नहीं है।
मैथिली की संख्या हिंदी में से पहले ही घट चुकी है। चूंकि संख्याबल के आधार पर ही हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला हुआ है। इसलिए इन भाषाओं के हिंदीभाषियों की कुल जनसंख्या से कटते ही राजभाषा के रूप में हिंदी का दावा खत्म होते देर नहीं लगेगी।

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