सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

झोपड़ी में रहने और भैंस दुहने वाले मंत्री : समीरात्मज मिश्र

 

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Image captionबंसीधर बौद्ध ने समाजवादी पार्टी की टिकट पर बहराइच की बलहा सुरक्षित सीट से चुनाव जीता था.
बहराइच ज़िले की नानपारा तहसील से क़रीब साठ किमी. दूर कतर्निया घाट के जंगल में उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण राज्य मंत्री बंसीधर बौद्ध का घर है. इस गांव में रास्ते भर जो भी घर दिखे वो कच्चे, मिट्टी और घास-फूस से बने थे. बंसीधर बौद्ध का घर भी उन्हीं में से एक था.
राजनीति में आज जहां जन बल और धन बल की चर्चा होती है, राजनीति को पैसा कमाने का ज़रिया कहा जाता है, वहीं बंसीधर बौद्ध राज्य सरकार में एक ऐसे मंत्री हैं जो आज भी अपने गांव के पुश्तैनी मकान नहीं बल्कि झोंपड़ी में रहते हैं.
बहराइच के बलहा सुरक्षित क्षेत्र से विधायक बंशीधर बौद्ध के पास न तो कोई गाड़ी है, न ही बैंक बैलेंस और न ही कोई खेती बाड़ी. जंगल के संसाधनों, पशुपालन और मज़दूरी से अभी तक पेट भरता था. क़रीब तीन साल से विधायक हैं और उसके बाद मंत्री बने, लेकिन जीने और रहने का तरीक़ा पहले जैसा ही है.

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Image captionबंसीधर बौद्ध अपनी भेंसों का दूध ख़ुद ही निकालते हैं.
सुबह क़रीब आठ बजे उनके घर जब हम पहुंचे तो बंसीधर बौद्ध चुनाव प्रचार के लिए अपने समर्थकों के साथ निकलने की तैयारी में थे. उन्होंने बताया कि उससे पहले दो भैंसों का दूध वो ख़ुद अपने हाथ से निकाल चुके थे. दरवाज़े पर आम लोगों के अलावा यूपी पुलिस के दो सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी ही बता पा रही थी कि ये घर किसी मंत्री का है.
वंशीधर बौद्ध के घर में चूल्हाइमेज कॉपीरइटAZEEM MIRZA
Image captionअखिलेश सरकार में राज्यमंत्री बंसीधर बौद्ध का परिवार साधारण मकान में रहता है.
हमारी पहली जिज्ञासा यही थी कि विधायक और मंत्री बनने के बाद भी क्या उनका ध्यान गाड़ी-बँगले की ओर नहीं गया. बंसीधर बौद्ध ने इसका जवाब कुछ यूं दिया, "जनता ने हमें एमएलए, मंत्री बनाया. इसलिए पहले जनता का कुछ काम किया. अब दोबारा मौक़ा मिलता है तो कुछ अपने लिए भी करेंगे."
बंशीधर बौद्ध का पशुपालक से राज्य मंत्री तक का सफ़र काफी मुश्किलों से भरा रहा है. कई साल पहले बलिया से रोज़गार की तलाश में उनके पिता बहराइच आए थे. यहां जंगल में मज़दूरी और पशुपालन करते थे. साल 2000 में बंसीधर बौद्ध अचानक राजनीति में आ गए.
राजनीति में आने का क़िस्सा भी बड़ा दिलचस्प है. वो बताते हैं, "मैं यहीं सरकारी खेत में चौकीदारी करता था. मज़दूरों से अच्छा संबंध था. ज़िला पंचायत में ये सीट एससी के खाते में चली गई तो कुछ लोगों के कहने पर हम भी चुनाव लड़ गए और जीत भी गए. बस यहीं से राजनीति में आ गए."

अपनी पत्नी के साथ बंसीधर बौद्धइमेज कॉपीरइटAZEEM MIRZA
Image captionबंसीधर बौद्ध की पत्नी को उम्मीद है कि उनके पति काम करते-करते पैसे कमाना भी सीख जाएंगे.
उनके विधायक और मंत्री बनने की कहानी भी किसी फ़िल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है. बताते हैं कि भैंस चराते हुए एक दिन समाजवादी पार्टी के एक नेता से मुलाक़ात हुई. बलहा में उपचुनाव होने थे और किसी एससी उम्मीदवार की तलाश थी. उस नेता की सिफ़ारिश पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें टिकट दे दिया और वो जीत भी गए.
बंसीधर बौद्ध कहते हैं, "विधायक बनने के बाद हमने अपनी बेटी की शादी में मुख्यमंत्री को भी आमंत्रित किया. वो आए यहां और मेरी ग़रीबी को देखकर मुझे मंत्री बना दिया."
पिछले साल अक्टूबर में आई बाढ़ में उनके कच्चे घर का एक हिस्सा गिर गया था जिसकी मंत्री जी ने अपने बच्चों के साथ मिलकर ख़ुद ही मरम्मत कर डाली.

बंसीधर बौद्ध का परिवारइमेज कॉपीरइटAZEEM MIRZA
Image captionबंसीधर बौद्ध के साथ उनका संयुक्त परिवार रहता है.
बंसीधर बौद्ध बेहद सरलता से बताते हैं कि दूसरे विधायकों और मंत्रियों को देखकर भी उनकी बराबरी का भाव उनके अंदर नहीं आता है. कहते हैं कि हम लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं, जो मिल गया वो भी कम नहीं है.
न सिर्फ़ बंसीधर बौद्ध बल्कि उनके परिवार के दूसरे सदस्यों में भी इसी सरलता और संतोष के भाव हैं. उनकी पत्नी भोजपुरी में कहती हैं, "पहले से तो अच्छा ही है. पहले तो खाने को भी नहीं था अब तो दस लोगों को खिला भी रहे हैं. और अभी तो सीख रहे हैं, जब सीख लेंगे तब पैसा भी कमाएंगे और घर भी बनवाएंगे."
साइन बोर्डइमेज कॉपीरइटAZEEM MIRZA
Image captionबंसीधर बौद्ध एक बार फिर बलसा सीट से मैदान में हैं.
स्थानीय लोग भी उनकी सादगी के क़ायल हैं. बहराइच के पत्रकार अज़ीम मिर्ज़ा गांव में पक्का घर न बना पाने की एक और वजह बताते हैं, जिसे बंसीधर बौद्ध भी स्वीकार करते हैं, "दरअसल ये वन ग्राम है, राजस्व गांव नहीं. यहां कोई भी स्थाई निर्माण नहीं हो सकता. पिछले दिनों मंत्री जी ने बताया था कि उनके पास तीन-चार लाख रुपए हैं, लेकिन उस पैसे से यहां घर बनवा नहीं सकते थे और दूसरी जगह बनवाने के लिए इतने पैसे बहुत कम थे."
बंसीधर बौद्ध समाजवादी पार्टी की ओर से बलहा से फिर चुनाव मैदान में हैं. सरकारी गाड़ी अब इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं और दो तीन गाड़ियां किराए की मँगा रखी हैं. कहते हैं कि चुनाव जीतने के लिए लोगों के बीच जो काम किया है, उसी के नाम पर वोट मांग रहा हूं.
वंशीधर बौद्ध की चुनाव प्रचार गाड़ियांइमेज कॉपीरइटAZEEM MIRZA
Image captionचुनाव में प्रचार करने के लिए उन्होंने किराए पर गाड़ियां ली हैं.
बंसीधर बौद्ध से हमने पूछा कि उनकी सरलता का अधिकारी फ़ायदा तो नहीं उठाते, तो उनका जवाब था, "फ़ायदा उठाते तो मैं अपने क्षेत्र में विकास के काम कैसे कर पाता. अधिकारी पूरा सम्मान देते हैं."
उनके पांच बेटे और तीन बेटियां हैं. बड़े भाई का परिवार भी साथ रहता है. सभी बेरोज़गार हैं. हालांकि बच्चे सभी थोड़ा बहुत पढ़े-लिखे हैं और नौकरी की तलाश में हैं. फ़िलहाल अभी किसी को नौकरी नहीं मिली है.
लेकिन किसी को इस बात का कोई मलाल भी नहीं है कि उनके मंत्री पिता ने उन लोगों के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल क्यों नहीं किया. बंसीधर बौद्ध की बड़ी बहू विमला कहती हैं, "लोगों की सेवा से बढ़कर न कोई पैसा है न धर्म है. इसका अपना सुख है. हमारे ससुर जी की समाज में जो इज़्ज़त है, उससे बढ़कर हम लोगों के लिए कुछ नहीं है."

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